बरनोल, एक एंटीसेप्टिक क्रीम, जो कभी घरों में जलने पर राहत देने के लिए इस्तेमाल होती थी, आजकल सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही है। लेकिन क्यों? आइए जानते हैं इस क्रीम के इतिहास और वर्तमान में इसके इस्तेमाल के बारे में।
बरनोल का इतिहास
बरनोल का एक लंबा और दिलचस्प इतिहास है, जो भारत में इसकी शुरुआत से लेकर आज के आधुनिक उपयोग तक फैला हुआ है।
भारत में शुरुआत
बरनोल को 1948 में बूट्स कंपनी द्वारा भारत में पेश किया गया था। शुरुआत में, यह क्रीम केवल डॉक्टरों द्वारा जले हुए रोगियों के लिए निर्धारित की जाती थी।
- डॉक्टरों द्वारा निर्धारित: शुरुआत में, बरनोल केवल डॉक्टर के पर्चे पर ही उपलब्ध था।
- जले हुए रोगियों के लिए: यह विशेष रूप से जले हुए रोगियों के इलाज के लिए बनाया गया था।
आम घरों में पहुंच
1960 के दशक में, बरनोल बिना प्रिस्क्रिप्शन के उपलब्ध हो गया, जिससे यह आम घरों में भी आसानी से मिलने लगा।
बिक्री पर प्रभाव और अधिग्रहण
समय के साथ, बरनोल की बिक्री में कई बदलाव आए, खासकर एलपीजी सिलेंडरों के उपयोग के बाद।
एलपीजी सिलेंडरों का प्रभाव
एलपीजी सिलेंडरों के उपयोग के कारण जलने की घटनाओं में कमी आई, जिससे बरनोल की बिक्री पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
अधिग्रहण
2000 में, रैकेट पिरामल ने बूट्स कंपनी से बरनोल का अधिग्रहण कर लिया, और बाद में डॉ. मोरेपेन ने इसे अपने अधिकार में ले लिया।
वर्तमान स्थिति और उपयोग
आश्चर्यजनक रूप से, बरनोल अभी भी सबसे ज्यादा बिकने वाले ब्रांडों में से एक है, और इसका उपयोग भी बदल गया है।
बिक्री में वृद्धि
बरनोल की बिक्री में हर साल 11% की वृद्धि होती है, जो इसे बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाती है।
मुहावरे के रूप में उपयोग
आजकल, बरनोल का उपयोग एक मुहावरे के रूप में भी किया जाता है, जिसका अर्थ है 'जले पर नमक छिड़कना'।
निष्कर्ष
बरनोल का इतिहास और वर्तमान उपयोग दोनों ही दिलचस्प हैं। एक समय में जलने के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली यह क्रीम, आज सोशल मीडिया पर एक मुहावरे के रूप में भी इस्तेमाल हो रही है। यह दिखाता है कि कैसे एक उत्पाद समय के साथ बदल सकता है और नए अर्थ प्राप्त कर सकता है।
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